नई दिल्ली,आर.कुमार: आयातकों की मांग और एशिया की अन्य मुद्राओं में गिरावट के कारण शुक्रवार को रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर बंद हुआ। डॉलर के मुकाबले रुपये में 0.3 प्रतिशत की गिरावट आई है। बाजार के हिस्सेदारों ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप नहीं किया, जिसके कारण कारोबार के आखिरी घंटों में रुपये में तेज गिरावट आई।
जब ये खबर आई कि रुपया सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंचा,रुपया धड़ाम,फिर गिरा रुपया,डॉलर के मुकाबले रुपया फिर टूटा। और भी ना जाने कितने हेडलाइंस थे तो बरबस वर्तमान में पीएम नरेंद्र मोदी जी की वो भाषण की लाइन याद आ गई जिसमें वो चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कह रहे हैं- ये ऐसे नहीं होता मित्रों, मैं शासन में बैठा हूं, मुझे मालूम है, इस प्रकार से रुपया इतनी तेजी से गिर नहीं सकता। अरे नेपाल का रुपया नहीं गिरता है, बांग्लादेश की करेंसी नहीं गिरती है, पाकिस्तान की करेंसी नहीं गिरती, श्रीलंका की करेंसी नहीं गिरती, क्या कारण है हिन्दुस्तान का रुपया पतला होता जा रहा है? ये जवाब देना पड़ेगा आपको, देश आपसे जवाब मांग रहा है? सौ. यूट्यूब की लिंक लगा दिया हूं।
अब जब रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार गिर रहा है। तो उठेगा कब मन में सवाल उठते हैं। 2014 से आप देश के लगातार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आसीन हैं तो फिर अब जवाब कौन देगा। देश को जानने का अघिकार है या नहीं? आपने धारा 370 हटाया, ऐतिहासिक कदम था। राम मंदिर का निर्माण हुआ। ये भी कल्पना से परे था। लेकिन अन्य मुद्दों पर कौन जवाब देगा? बेरोजगारी,मंहगाई,भ्रष्टाचार पर एकतरफा कार्रवाई, किसान, नवजवान, आरक्षण,एससी/ एसटी एक्ट के नाम पर उत्पीड़न, सेना में संविदा पर बहाली, और नेताओं को एक नहीं चार-चार पेंशन, आपके द्वारा ही लाई गए ज्यादातर योजनाएं फेल है। कितने गिनाऊं। लिस्ट लंबी है। ताजा मामला तो चंदा का धंधा ही काफी है। हालांकि पीएम केयर्स फंड का मामला भी संदेह के घेरे में है।
ऐसे सरकार तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी आपकी ही बन रही है क्योंकि मरा हुआ विपक्ष क्या लड़ेगा। जिसके पास ना कोई विजन है ना ही नेता। और हां अब तो इनके पास टिकट कटाने को भी पैसे नहीं हैं। ले देके एक मात्र स्टार प्रचारक राहुल और प्रियंका गांधी हैं जो कि खुद ही अपनी प्रतिष्टा बचालें वो ही बहुत है। खड़गे साहब राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं अब इनके नाम पर कितनी भीड़ जुट पाएगी कांग्रेसियों को ही भरोसा नहीं है। ये तो रही नेताओं कि बात। जरा निचले स्तर पर जाइए जहां से चुनाव जीता जाता है, वो है कार्यकर्ता। मेरा दावा है कि आज की तारीख में कांग्रेस को हर बुथ पर पोलिंग एजेंट भी नहीं मिल पाएंगे।
देखिए चुनाव वर्तमान और भविष्य को देखते हुए भी लड़े जाते हैं। लेकिन दुनिया का एक मात्र राजनीतिक दल कांग्रेस है जो ना तो आज की परिस्थिति को देखते हुए चुनाव की तैयारी कर रही है और ना ही अगले चुनाव को देखते हुए सोच रही है। ये तो अब क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बनकर रह गई है। तो ऐसे में इन्हें कहां से कार्यकर्ता मिलेंगे और कहां से नेता खड़े होंगे। एक उदाहरण से समझिए। बिहार मे 40 लोकसभा की सीट है। पिछली बार एक सीट पर पार्टी को जीत मिली थी। पहले भी गठबंधन कर चुनाव लड़ी गई थी और इस बार भी राजद के सहारे है। अब जरा समझिए जो पार्टी सभी लोकसभा क्षेत्र में उम्मीदवार ही खड़ा नहीं करेगी तो उसके नेता और कार्यकर्ता कहां से बनेंगे? कौन इस पार्टी से जुड़ेगा? क्योंकि यहां तो कांग्रेस राजद के पीछे है और यूपी में सपा के पीछे रेंग रहा है। अजी साहब कांग्रेस के पास खोने के लिए है ही क्या जो इतना डरी हुई है। वो तो देश में उसे वैसे भी 40-50 सीट अकेले लड़ने पर भी उसे मिल जाएगा। लेकिन अगर अकेले चुनाव में उतरेगी तो इसका फायदा उसे अगले लोकसभा या विधानसभा के चुनाव में मिलेंगे। कम से कम हर जगह लोग तो खड़े हो जाएंगे।
खैर छोड़िए कांग्रेस को समझाना और कोलकाता पैदल जाना दोंनो बराबर है। हां हम बात कर रहे थे रुपये गिरने की। देखिए ‘साहब’ (पीएम नरेंद्र मोदी) चुनाव जीतना और पीएम बन जाना इस बात की मुहर नहीं है कि वो तमाम मुद्दे देश में हल हो गए हैं। वो आज भी मुंह बाए खड़े हैं। अफसोस इस बात का है कि विपक्ष विवेकहीन की तरह व्यवहार कर रहा। इसीलिए मैं बीच में कांग्रेस का जिक्र किया। हालांकि उम्मीद करता हूं कि इस बार जीत के बाद ‘सरकार’ (पीएम नरेंद्र मोदी) आप बुनियादी सवाल का जवाब ढूंढेंगे।